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माननीय सभापति महोदय, प्रजातंत्र में शासन का संचालन प्रजा करती है, प्रजा का शासन में अधिक हाथ हो, यही प्रजातंत्र की सर्वश्रेष्ठता की कसौटी है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जन की भावनाओं का जानना और जन की आशाओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है, समाचार-पत्र अगर स्वतंत्र रूप से कार्य करें तो प्रजा का सुख बढ़ जाएगा, यदि प्रेस राज्य के अंकुश में रहेगा तो प्रजा की इच्छाओं की अभिव्यक्ति करना एक अपराध बन जाएगा, और इस स्थिति में प्रेस की लोकप्रियता भी घट जाएगी, प्रेस की दबी आवाज सरकार के पाप का कारण है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए समाचार पत्रों को पूर्णतः स्वतंत्र होना चाहिए। प्रेस के महत्व को सभी जानते हैं। इसके महत्व पर ध्यान न देना अत्यधिक बड़ी भूल है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को देश, प्रदेश की बात का ज्ञान समाचार पत्रों द्वारा ही होता है। प्रजातंत्र में समाचार पत्रों का बड़ा योगदान रहता है। लोकतंत्र प्रणाली महत्वपूर्ण होने के बावजूद अत्यधिक जटिल है। प्रजातंत्र की सफलता आर्थिक विकास, सामाजिक स्थिति और न्यायपालिका पर निर्भर नहीं है। यदि प्रजातंत्र रूपी कल का एक पुतला भी गिरकर नष्ट हो जाएगा तो सम्पूर्ण लोकतंत्र की मशीनें संचालित होने से रुक जाएँगी। प्रजातंत्र के रूप में प्रेस द्वारा प्रकाश पड़ता है। प्रेस की स्वतंत्रता के अनेक लाभ हैं, प्रजातंत्र का रूप स्पष्ट रूप से समाचार पत्रों में दिखायी देता है। प्रजातंत्र पर समाचार पत्र ही अंकुश रखते हैं और इसी उद्देश्य से समाचार पत्रों को स्वतंत्र रहना चाहिए। जन आंदोलन की अभिव्यक्ति भी प्रेस ही कर पाने में सफल हुआ। यही नहीं, युग के क्रांतिकारी, संत और प्रचारकों के लेखों के समाचार पत्रों में स्थान पाकर आंदोलनों में जान ला दी और इन ही आंदोलनों के द्वारा प्रजातंत्र के गुण-दोषों पर प्रचार किया गया। आज के जन आंदोलनों को समाचार पत्रों ने खुला समर्थन दिया। इससे प्रजातंत्र में जन जागृति के आंदोलनों का रूप मुखरित हो उठा। राष्ट्रीय जागृति और राष्ट्रीय भावना का प्रकाश प्रेस ही कर पाया है। प्रेस ने अपनी आवाज के जयघोष से जागृति उत्पन्न कर जन की शक्ति को आँका, साथ ही राज्य को बता दिया कि उसका एक मंत्र होना उचित और न्यायसंगत नहीं है। जन के अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान समाचार पत्रों ने ही बताया। जन की गरीबी, भूखमरी, उत्पीड़न और रोग-ग्रस्तता के कष्टों में समाचार पत्रों ने सहायता की है, समाचार पत्र जन शक्कि के सामने रहे, जन आंदोलन की धधकती आग को प्रज्वलित करते रहे।
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